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मूँगा

by CKadmin

यह रत्न समुंद्र की गहराइयों में बनता है। विज्ञान की भाषा में इसे कोरल या प्रवाल के नाम से जाना जाता है। मूँगा एक समुंद्री जीव का बाहरी ठोस आवरण होता है। मूँगा कई रंगों का होता है जिनमें लाल रंग का मूँगा प्रायः काफी प्रसिद्ध है। इसका रंग समुंद्र में इसकी गहराई, वहाँ के दाब व ताप पर निर्भर करता है। ज्योतिष शास्त्र में इस रत्न को मंगल ग्रह के साथ जोड़ा जाता है। मंगल ग्रह मंगल कार्यों , साहस, हिम्मत, दृढ़संकल्प, निडरता, बल, क्रोध, पराक्रम व ऊर्जा का कारक माना जाता है। जातक के छोटे भाई बहन इसी ग्रह से दर्शाए जाते हैं। शरीर में रक्त का कारक भी मंगल ग्रह है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस रत्न को धारण करने से मंगल ग्रह से मिलने वाली नकारात्मकता व पीड़ा को कम किया जाता है और साथ ही मंगल से मिलने वाले लाभों में वृद्धि की जा सकती है। हम यहाँ आपको बता दें कि मंगल ग्रह को दो राशियों का स्वामित्व मिलता है, मेष व वृश्चिक। जिनमें से मेष राशि अग्नि तत्व है जबकि वृश्चिक राशि जल तत्व की राशि है। इस रत्न को दो आकृतियों में धारण किया जाता है त्रिकोण व बेलनाकार।
मूँगा धारण करने के लाभ:
-इससे नजरदोष का निवारण होता है।
-इससे भूत प्रेत बाधा के भय से मुक्ति मिलती है।

  • जातक की इच्छाशक्ति व आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  • हृदयरोग व रक्त सम्बन्धी विकारों से राहत मिलती है।
  • इस रत्न के धारण करने से व्यक्ति के क्रोध, क्रूरता व ईर्ष्यावादी स्वभाव में कमी आती है।
  • आलस्य को दूर करता है।

मूँगा धारण करने की विधि:
मूँगा ही नहीं, किसी भी नग को धारण करते हुए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। हर रत्न या नग हर लग्न वाले के लिए कारगर नहीं हो सकता। अतः किसी भी रत्न को धारण करने से पहले जातक की कुंडली का पूर्ण आंकलन अति आवश्यक है। मूँगा रत्न को सोने, चांदी या ताँबे की अँगूठी में बनवाया जा सकता है। मूँगा धारण करने के लिए अनामिका अंगुली उपयोग में लाई जाती है। पुरूष को दाएं हाथ की व स्त्री को बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में मूँगा धारण करना चाहिए। मूँगा को धारण करने के लिए मंगलवार का दिन ही माननिय है। मंगल ग्रह के नक्षत्र व होरा में इसे पहना जाए तो और भी श्रेष्ठ है।
सर्वप्रथम अंगूठी को दूध व गंगाजल से धोकर साफ करलें। नहा धोकर घर के पूजा स्थल में बैठकर नीचे दिए गए मंगल ग्रह के बीज मंत्र के 108 जाप के बाद आप इसे उपरोक्त बताई गई अंगुली में धारण करें।

गणेश भगवान जी का मंत्र
ॐ गं गणपतये नमः

मंगल ग्रह का बीज मंत्र
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।

इस रत्न के शुभ फल प्राप्त करने के लिए इसकी सफाई व स्वच्छता का नियमित रूप से ध्यान रखें।

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