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पंचमुखी हनुमान

by CKadmin

बात उस समय की है जब श्री राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था और रावण अपनी हार के बहुत समीप था।रावण ने अपनी हार को जीत में बदलने के लिए एक अंतिम प्रयास किया। उसने अपनी मायावी भाई अहिरावन को बुलाया जो माँ भवानी का परम भक्त होने के साथ साथ तंत्र मंत्र का बहुत बड़ा ज्ञाता था।

रात के समय मौका पा कर उसने अपनी माया से श्री राम की सेना को निंद्रा में डाल दिया और राम एवं लक्ष्मण का अपहरण कर के अपने निवास स्थान पाताल लोक ले गया। कुछ घंटों बाद जबमाया का प्रभाव कम हुआ, तब श्री राम की सेना अपनी चेतना में आये।सभीश्री राम और लक्ष्मण को शिविर में नहीं पाया तो वो सब चिंतित हो गए। विभीषण ने यह माया पहचान लीओर बोला कि यह कार्य सिर्फ अहिरावन कर सकता है। उन्होंने हनुमान जी को पाताल लोक जाने की प्रार्थना की।

पाताल लोक में पहुँच कर, हनुमान जी सबसे पहले अपने पुत्र मकरध्वज से मिले और उसको युद्ध में हराया।मकरध्वज ने हनुमान जी को अहिरावन की मृत्यु का राज़ बताया और बोला की पांच दिशाओं में पांचदीपक जल रहे है, उन पाँचों दीपक को एक साथ बुझाने से हीअहिरावणकी मृत्यु संभव है।इस कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा।उनकेउत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।इसरूप को धरकर उन्होंने एक साथ वो पाँचों दीप बुझायें और अहिरावण का वध करश्री राम और लक्ष्मन जी को मुक्त करवाया।

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