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भूमि चयन

by CKadmin

भवन निर्माण प्रक्रिया का प्रथम और महत्वपूर्ण चरण

वास्तुशास्त्र में भूमिचयन एक महत्वपूर्ण चरण है। पंचतत्व के ज्ञान से हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी तत्व कितना जरूरी है। पृथ्वी तत्व में पांचों गुण विद्यमान होते हैं। भूमि पर ही भवन या इमारत की आधारशिला रखी जाती है। वास्तुशास्त्र में भूमि के शुभ अशुभ को जानने की अनेक विधियां उपलब्ध है। वर्ण के आधार पर भूमिचयन करते हुए भूमि के रंग, गन्ध, रूप, स्वाद आदि को ध्यान में रखा जाता है। भारतीय मुनिऋषियों के अनुसार भूमि के कुछ गुण व्यक्ति के वर्ण, कर्म, राशि आदि के आधार पर विचारणीय होते हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार चारों वर्णों के लिए भूमिचयन की परिभाषा निम्नप्रकार है:-

ब्राह्मणी भूमि:- यह भूमि श्वेत वर्ण की होती है जो कि ज्ञान व शांति का प्रतीक है। इस भूमि की सुगंध मनोहर होती है तथा स्वाद मधुर होता है। इसका स्पर्श कोमल होता है।

क्षत्रिय भूमि:- यह भूमि रक्त वर्ण की होती है। जो मानवशरीर में खून के रंग को दर्शाता है। यह भूमि बल व शारीरिक सुदृढ़ता प्रदान करती है। इसकी गन्ध भी रक्त जैसी होती है तथा स्पर्श कठोर होता है। इसका स्वाद कसैला होता है।

वैश्य भूमि:- यह भूमि पीले रंग की होती है। यह इस पर वास करने वाले को व्यापार व कारोबार में सफलता और धन प्रदान करती है। यह स्पर्श में भी मध्यम होती है। यह स्वाद में खट्टी व शहद की गंधयुक्त होती है।

शुद्र भूमि:- यह भूमि रंग से काली व शराब की गंध वाली होती है। इसका स्पर्श कठोर व स्वाद कड़वा होता है। इस भूमि पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिए। यह भूमि वास्तु की दृष्टि से त्याज्य है।

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