राहू व केतु ग्रह से कुंडली में बनता है कालसर्प दोष। राहू व केतु जो कि ज्योतिष शास्त्र में छाया ग्रह की संज्ञा दी जाती है, सदैव वक्री चलते है। राहू व केतू की एक विशेष स्थिती जब बाकी सातों ग्रह इन दोनों ग्रहों के मध्य स्थित हों, कुंडली में कालसर्प दोष का निर्माण करती है। राहू को सांप का मुंह व केतु को सांप की पूंछ कहा जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहू का जन्म भरणी नक्षत्र में अधिदेवता काल व केतु का जन्म अश्लेषा नक्षत्र में अधिदेवता सर्प के अंतर्गत हुआ है अतः इन दोनों ग्रहों से जनित दोष को कालसर्प दोष कहा जाता है। जिस जातक की कुंडली में कालसर्प दोष बनता है उसे आजीवन अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, विशेषकर कुंडली के उन भावों से सम्बंधित जिन भावों में राहू व केतू ग्रह उपस्थित हों। इन लोगों के बनते काम भी बिगड़ जाते हैं। जैसे विवाह में विलंब, संतान सुख से वंचित रहना, विद्या प्राप्ति में रुकावट, कारोबार व व्यवसाय में अवरोध, आर्थिक अवनति, घर परिवार में मंगल कार्यों में बाधा इत्यादि।
कुंडली में राहू – केतू व 12 भावों के मध्य 12 प्रकार के कालसर्प दोष बताए जाते हैं:-
1. अनंत
2. कुलिक
3. वासुकि
4. शंखपाल
5. पद्म
6. महापद्म
7. तक्षक
8. कर्कोटक
9. शंखचूड़
10. घातक
11. विषधर
12. शेषनाग
कालसर्प दोष की काट व निवारण हेतू जातक निम्नलिखित उपाय को कर स्वयं को इस दोष के दुष्प्रभावों से सुरक्षित कर सकता है:-
– राहू व केतू के मंत्र जाप करना
राहू मंत्र : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
केतु मंत्र : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:
– प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग व छत्ररूप में विराजित शेषनाग जी का जल अभिषेक करें।
– शिवलिंग पर चंदन का इत्र चढ़ाएं।
– सावन के माह में शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करें।
– कुते को मीठी रोटी खिलाएं।
– स्वयं के वजन बराबर कच्चा कोयला जलप्रवाह करें।