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सौरमंडल में ग्रहों के राजा हैं सूर्य

by CKadmin

हमारे ज्योतिष शास्त्र में सूर्य एक ऐसा ग्रह है जो प्रत्यक्ष रूप से दिखता है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में सूर्य से निर्मित ऊर्जा का ही संचार होता है। सूर्य ही एकमात्र हमारे सौरमंडल की ऊर्जा का स्त्रोत है। सूर्य के प्रकाश व ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवमंडल सम्भव हो पाया है। पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर परिक्रमा के कारण ही दिन रात हो पाते हैं। सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का राजा माना जाता है। सूर्य ग्रह को जगत की आत्मा कहा जाता है। वेदों में सूर्य को ईश्वर के नेत्रों की संज्ञा दी गई है। गायत्री मंत्र को सूर्य का पूरक ही माना जाता है। खगोलशास्त्र में सूर्य का एक आयन की अवधि 6 महीने की होती है। अर्थात सूर्य 6 महीने उत्तरायण व 6 महीने दक्षिणायन में होते हैं। पूर्व दिशा का सम्बंध सूर्य से है। सूर्य ग्रह को कृतिका, उत्तराषाढ़ा व उत्तराफाल्गुनी का स्वामित्व प्राप्त है। राशिचक्र में सिंह राशि सूर्य ग्रह से सम्बंधित है। सूर्य मेष राशि मे उच्च व तुला राशि में नीच के हो जाता है। उपरोक्त सभी तथ्यों के चलते सूर्य ग्रह जातक की कुंडली में अहम भूमिका निभाता है। सूर्य ग्रह जातक की आत्मा, चरित्र, व्यवहार, तेज, ऊर्जा, सोच, मस्तिष्क, हृदय व हड्डियों का कारक होता है। सूर्य को पिता कहा जाता है। सूर्य ग्रह यदि कुंडली में प्रबल होकर विद्यमान हो तो जातक को सफल, प्रभावी व प्रतापी बनाता है। सूर्य व्यक्ति की मूल ऊर्जा का स्त्रोत है। सूर्य शरीर की ताकत, व्यक्ति की नेतृत्व की क्षमता, मान सम्मान, निर्णय शक्ति, दृढ़निश्चय व आत्मविश्वास में वृद्धि करता है। सूर्य ग्रह का बली होना सरकारी नौकरी के योग को भी मजबूत करता है। परन्तु यही सूर्य यदि मंदी स्थिति में बैठा हो तो जातक के व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में जातक का स्वाभिमान अहंकार में बदल जाता है। जातक अधिक महत्वाकांक्षी होने के कारण स्वभाव से लालची बन जाता है। सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आ जाती है।

सूर्य ग्रह के उत्तम फल प्राप्त करने के लिए निम्न उपाय करें-
– गायत्री मंत्र का जप करें।
– पिता की सेवा करें।
– पिता के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
– काले व नीले रंग का परहेज करें।
– स्वभाव में अहंकार को स्थान न दें।

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