Home रमल ज्योतिष रमल विद्या: बिना कुंडली के प्रश्नोत्तरी की एक अद्धभुत कला

रमल विद्या: बिना कुंडली के प्रश्नोत्तरी की एक अद्धभुत कला

by CKadmin

मानव हमेशा भविष्य को जानने के लिए उत्सुक रहा है। स्वयं के भविष्य को लेकर मनुष्य की जिज्ञासाओं का
अंत नहीं है। मनुष्य की इस उत्सुकता को शांत करने का हमेशा से एकमात्र साधन रहा है ज्योतिष शास्त्र। 
ज्योतिष शास्त्र में प्रश्नोत्तरी की अनेक विधियां उपलब्ध है। इन्हीं में से एक है रमल प्रश्नोत्तरी विद्या। यह पासों
पर आधारित एक अनोखा गणित है। रमल शब्द का अर्थ है मनोरंजन अथवा कोई ऐसी क्रीड़ा जिसमें मन रमा
रहे। हम सब इस बात से परिचित हैं कि महाभारत में शकुनी के पास पासों की कला का अभिन्न ज्ञान था। रमल
ज्योतिष के संदर्भ में एक और कथा इस प्रकार प्रचलित है कि एक बार माता पार्वती खेल खेल में कहीं जा कर
छिप गई। जब भगवान शिव अनेक प्रयासों के बाद भी माता पार्वती को न खोज सके तब महाभैरव ने शिव के
सामने चार बिन्दु बनाए और उनकी सहायता से उन्हें पार्वती मां को खोजने को कहा। तब भगवान शिव ने मां
पार्वती को सातवें लोक से खोज निकाला। अतः पौराणिक मान्यताओं को आधार माना जाए तो रमल एक
अत्यंत प्राचीन विद्या है। रमल विद्या के द्वारा घटना के होने न होने, उसके घटित होने के समयकाल का
आंकलन, घटना के होने का माध्यम, उससे प्राप्त लाभ और हानि, व घटना की शुभता व अशुभता के बारे में
जाना जा सकता है।
प्रश्नोत्तर की किसी भी विद्या का सीधा सम्बन्ध जातक के मन से होता है। प्रश्नकर्ता के द्वारा पूछा जाने वाला प्रश्न
उसके अन्तर्मन व भावना से जुड़ा होना चाहिए। मनोरंजन व हास्यविनोद की दृष्टि से प्रश्न नहीं करना चाहिए।
रमल विद्या में जातक की जन्मकुंडली की आवश्यकता नहीं होती। अपितु रमल ज्योतिष प्रश्नकर्ता की किसी भी
प्रकार की निजी जानकारी का मोहताज नहीं है। जरूरत है तो केवल श्रद्धा व विश्वास प्रश्न किए जाने की।
रमल प्रश्नोत्तरी की विधि में प्रश्नकर्ता से प्रश्न जानने के बाद पासों को चलाया जाता है व 16 भाव की एक
प्रश्नकुंडली का निर्माण किया जाता जाता है। वैदिक ज्योतिष से अलग यहाँ 16 भाव की कुंडली का निर्माण होता
है जहाँ 13 14 15 व 16वां भाव साक्षी कहलाते हैं। इस प्रकार निर्मित प्रश्नकुंडली का आंकलन कर रमल
ज्योतिषी प्रश्न का उत्तर प्राप्त करता है। रमल विद्या से प्राप्त फलादेश बहुत सटीक होता है।

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