Home वास्तु शास्त्र क्यों और कैसे प्रभावित करता है वास्तु मानव जीवन को

क्यों और कैसे प्रभावित करता है वास्तु मानव जीवन को

by CKadmin

वास्तु की बहुत ही सरल सी परिभाषा यह है कि किसी भी स्थान को वास योग्य बनाने के विज्ञान को
वास्तुशास्त्र कहते है। वास्तुशास्त्र का जिक्र वेदों व पुराणों में भी मिलता है जिससे यह सिद्ध होता है कि यह एक
बहुत ही प्राचीन कला है। एक भवन जब निर्मित किया जाता है तो वहाँ एक ऊर्जाचक्र का भी निर्माण होता है।
यदि भवन की ऊर्जा का भवन में निवास करने वाले जातकों के साथ सन्तुलन न हो तो वह उनके लिए अशुभ व
अनिष्टकारी सिद्ध होता है। अतः वास्तुशास्त्र जिसकी शुरुआत महान वास्तुज्ञाता विश्वकर्मा जी ने लाखों वर्ष पूर्व
की थी, मानव को ऐसे सिद्धान्त व सूत्र उपलब्ध करवाता है जिनका वहन करके वह एक सुखमय जीवनयापन
कर सकता है। जिस प्रकार मानव शरीर मे विद्यमान आत्मारूपी ऊर्जा के निकलने पर शरीर निष्प्राण हो जाता
है ठीक उसी प्रकार भवन में निर्मित ऊर्जाचक्र भवन के प्राणों का आधार है। यही सकारात्मक ऊर्जा वहाँ निवास
करने वालों को मानसिक व शारीरिक सुख प्रदान करती है। अतः आवश्यक है कि भवन निर्माण वास्तुसङ्गत
हो। भवन निर्माण की प्रक्रिया में वास्तु के सिद्धांत भूमिचयन के चरण से ही लागू हो जाते हैं। भूमिचयन, नींव
मुहूर्त, भवन कक्षों का वास्तुसङ्गत स्थान निर्धारण, भवन के मुख्यद्वार के लिए अनुकूल दिशा व पद का चयन
आदि के बारे में वास्तु शास्त्र में ध्यान रखा जाता है। वास्तुशास्त्र के मूलभूत उद्देश्य भवन में निवास करने वाले
जातक को उन्नति एवं सुख प्रदान करना है। इसलिए किसी भी व्यक्ति को भवन निर्माण किसी वास्तुविशेषज्ञ से
सलाह लेकर ही करवाना चाहिए।

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