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वास्तुपुरुष की उत्तपत्ति कथा

by CKadmin

विश्वकर्मा जी को वास्तु विज्ञान का प्रवर्त्तक माना जाता है। हालांकि मत्स्यपुराण के अनुसार वास्तुज्ञान को सर्वप्रथम भगवान श्री विष्णु के मत्स्य अवतार ने मनु को दिया था। सम्पूर्ण वास्तु वास्तुपुरूष पर आधारित है। किसी भी भवन निर्माण के कार्य को आरंभ करने से पूर्व वास्तुपुरुष की पूजा की जाती है। ऋग्वेद संहिता में वास्तोष्पति नाम के देवता के बारे में वर्णन मिलता है we जिनका भवन निर्माण के समय आह्वाहन किया जाता है। वास्तुपुरुष से भवन निर्माण कार्य के निर्विघ्न सम्पन्न होने की प्राथना की जाती है। बनने वाला भवन उसमें निवास करने वालों के लिए हर प्रकार से शुभ हो, निरोगी काया, भौतिक सुख साधन,  ख्याति एवं प्रसिद्धि, वैभव व ऐश्वर्य प्रदान करने वाला हो, ऐसी कामना की जाती है।

मत्स्यपुराण में वास्तुपुरुष की उत्तपत्ति की कथा कही गई है। कथा के अनुसार भगवान शिव के मस्तक से गिरी पसीने की बूंदों से एक विशाल पुरुष का उद्भव हुआ। उसने पैदा होते ही शिव भगवान से अपनी भूख को शांत करने के लिए तीनों लोकों को अपना ग्रास बनाने की अनुमति माँगी। भगवान शिव ने तथास्तु कह अनुमति दे दी। वह दानव अब प्रत्येक वस्तु को अपनी भूख का शिकार बनाने लगा। यह देख देवता व राक्षस दोनों बहुत चिंतित थे और अपनी चिंता के निवारण के लिए ब्रह्मा जी के पास पहुँचें। ब्रह्मा जी ने कहा कि आप सभी उस दानव को अधोमुख गिराकर उस पर बैठ जाएं। सभी ने वैसा ही किया। जिस देवता ने उसे जहाँ से पकड़ रखा था उस पर वहीं निवास कर लिया। अब उस दानव ने रक्षा के लिए ब्रह्मा जी को याद किया। ब्रह्मा जी ने उसे अपने मानस पुत्र की संज्ञा दी और कहा  कि तुम संसार में वास्तुपुरुष के नाम से जाने जाओगे। तुम्हारी रचना भाद्रकृष्ण की तृतीया, दिन शनिवार कृतिका नक्षत्र में हुई है। पृथ्वी लोक पर जो भी भवन निर्माण कार्य तुम्हें पूज्य करके किया जाएगा वह भवन हर प्रकार से सुख समृद्धि प्रदायी होगा। भवन निर्माण से पहले की गई हवन पूजा व यज्ञ में जो तुम्हें सामग्री चढ़ाई जाएगी वही तुम्हारा भोजन होगी।

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