Home आध्यात्म पीपल के वृक्ष को शनि देव का वरदान

पीपल के वृक्ष को शनि देव का वरदान

by CKadmin

हिन्दू धर्म में पीपल वृक्ष को अति महत्वपूर्ण व पूजनीय स्थान प्राप्त है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में स्वयं को पीपल वृक्ष की संज्ञा दी है। कहा जाता है कि शनिवार के दिन पीपल वृक्ष पर सरसों के तेल का दीपक जलाकर पीपल की परिक्रमा करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ खत्म हो जाती हैं। नज़र दोष निवारण होता है व शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।

एक कथा के अनुसार एक समय मे ऋषि अगस्त्य गोमती नदी के तट पर सत्रयाग की दीक्षा लेकर वर्षों तक तप करते रहे। उस समय स्वर्गलोक पर राक्षशों का आधिपत्य था। इस जीत के घमंड में मदोन्मत कैटभ नाम का एक दैत्य अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष का रूप लेकर अपने समीप हवन सामग्री को एकत्रित करने की इच्छा से आने वाले ऋषियों को खा जाता था। इस तरह राक्षस ऋषियों द्वारा आयोजित यज्ञ हवन आदि में विघ्न डालते व उन्हें नष्ट कर देते थे।

इस प्रकार सन्तापित ऋषिगण दक्षिण तीर पर तपस्या कर रहें शनिदेव जी के पास गए व उनसे रक्षा करने की याचना की। शनिदेव ने ब्राह्मण का वेश धारण किया व पीपल वृक्ष के समीप गए तो राक्षस शनि देव को भी साधारण मुनिऋषी समझ कर खा गया। शनिदेव तब उस राक्षस का पेट व आंतें फाड़कर वृक्ष के तने से बाहर आ गए। ऐसा करने पर ऋषिगणों ने भगवान शनि को धन्यवाद किया व प्रसन्न होकर वन्दनीय भाव से प्रणाम किया। तब शनिदेव जी ने प्रसन्न होकर इस प्रकार कहा- आप डरो मत। आज के बाद जो भी व्यक्ति पीपल वृक्ष की शनिवार के दिन श्रद्धा भावना से पूजा करेगा उसे किसी प्रकार की ग्रह पीड़ा नहीं होगी। यह मेरा वरदान है।

हिन्दू धर्म में पीपल वृक्ष को अति महत्वपूर्ण व पूजनीय स्थान प्राप्त है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में स्वयं को पीपल वृक्ष की संज्ञा दी है। कहा जाता है कि शनिवार के दिन पीपल वृक्ष पर सरसों के तेल का दीपक जलाकर पीपल की परिक्रमा करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ खत्म हो जाती हैं। नज़र दोष निवारण होता है व शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।

एक कथा के अनुसार एक समय मे ऋषि अगस्त्य गोमती नदी के तट पर सत्रयाग की दीक्षा लेकर वर्षों तक तप करते रहे। उस समय स्वर्गलोक पर राक्षशों का आधिपत्य था। इस जीत के घमंड में मदोन्मत कैटभ नाम का एक दैत्य अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष का रूप लेकर अपने समीप हवन सामग्री को एकत्रित करने की इच्छा से आने वाले ऋषियों को खा जाता था। इस तरह राक्षस ऋषियों द्वारा आयोजित यज्ञ हवन आदि में विघ्न डालते व उन्हें नष्ट कर देते थे।

इस प्रकार सन्तापित ऋषिगण दक्षिण तीर पर तपस्या कर रहें शनिदेव जी के पास गए व उनसे रक्षा करने की याचना की। शनिदेव ने ब्राह्मण का वेश धारण किया व पीपल वृक्ष के समीप गए तो राक्षस शनि देव को भी साधारण मुनिऋषी समझ कर खा गया। शनिदेव तब उस राक्षस का पेट व आंतें फाड़कर वृक्ष के तने से बाहर आ गए। ऐसा करने पर ऋषिगणों ने भगवान शनि को धन्यवाद किया व प्रसन्न होकर वन्दनीय भाव से प्रणाम किया। तब शनिदेव जी ने प्रसन्न होकर इस प्रकार कहा- आप डरो मत। आज के बाद जो भी व्यक्ति पीपल वृक्ष की शनिवार के दिन श्रद्धा भावना से पूजा करेगा उसे किसी प्रकार की ग्रह पीड़ा नहीं होगी। यह मेरा वरदान है।

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Richard Roe July 11, 2017 - 9:59 pm

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