पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार अनलासुर नाम के एक दैत्य ने अपना अत्याचार तीनों लोकों में बहुत अधिक फैला दिया था। वह किसी भी धर्म के कार्य व यज्ञ को संपन्न नहीं होने देता था। उस दैत्य के दुर्व्यवहार ने तीनों लोको में त्राहि त्राहि कर दिया था। वह ऋषि-मुनियों व अन्य लोगों को जिंदा निगलकर अपनी भूख का ग्रास बना लेता था। उस दैत्य की इस क्रूरता से सभी ऋषि मुनि व देवता दुखी हो चुके थे। अनलासुर नाम के उस दैत्य से मुक्ति पाने के लिए सभी देवता ब्रह्मा जी को अग्रणी बना कर कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान महादेव के पास पहुंचे और उस दैत्य के अत्याचारों का अंत करने की विनती की। तब भगवान शिव ने सभी देवताओं की याचना को स्वीकार करते हुए कहा की उसका संहार केवल विघ्नहर्ता गणेश जी ही कर सकते हैं। तब गणेश भगवान ने उस दैत्य के साथ युद्ध किया और उसे अंत में जिंदा ही निगल गए। ऐसा करने के बाद गणेश भगवान को पेट में अग्नि जैसी ज्वाला की ना शांत होने वाली जलन का अनुभव हुआ। अनेकों उपाय करने के बाद भी उनकी जलन शांत नहीं हुई। तब ऋषि कश्यप ने दूर्वा की 21 गांठे गणेश जी को खिलाई। गणेश जी ने दूर्वा का सेवन किया तो उनकी पेट की जलन शांत हुई। इसी के बाद से गणेश जी पर दूर्वा अर्पित करने का महत्व है। शास्त्रों में गणेश जी पर 21 दूर्वा को मोली से बांधकर चढ़ाए जाने का विधान है। निम्नलिखित मंत्रों का गणेश जी की मूर्ति पर दूर्वा चढ़ाते समय उच्चारण करना चाहिए:-
ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ विघ्ननाशनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः
ॐ कुमारगुरवे नमः